Rakesh rakesh

Add To collaction

लेखनी प्रतियोगिता -27-Feb-2023 धरती पर स्वर्ग

सरस्वती मां की पूजा और भंडारा पूरा होने के बाद गांव का प्रधान छत्रपाल गांव के दो युवकों को साफ-सफाई और इधर-उधर बिखरे सामान को ठीक ठिकाने पर रखने के लिए नमूना को ढूंढने भेजता है। छत्रपाल को नमूना पर उस दिन बहुत क्रोध आ रहा था, क्योंकि छत्रपाल ने नमूना से पहले ही कह दिया था कि जिस दिन सरस्वती मां की पूजा के बाद भंडारा हो तो, यही रह कर पूजा और भंडारे का काम संभालना है।

 गांव में काम करने वाले मजदूरों और युवकों की कमी नहीं थी, लेकिन नमूना अनाथ था। इसलिए पूरा गांव उस पर अपना हक समझता था। लोग कहते थे कि नमूना नाजायज बच्चा था। इसलिए उसकी मां तीन महीने के नमूना को मंदिर और मस्जिद के बीच में एक खाली मैदान में तेज बारिश में मरने के लिए छोड़ कर भाग गई थी। अब नमूना की आयु 18 वर्ष की हो गई थी। नमूना कद काठी रंग रूप से बहुत सुंदर था। लेकिन वह इतना भोला भाला और बच्चों जैसे मासूम था कि कोई भी आसानी से उसका शोषण कर लेता था। इसलिए भी लोग उसे नमूना कह कर पुकारते थे। दूसरा बचपन में किसी ने भी उसके नामकरण की जिम्मेदारी नहीं उठाई थी। नमूना को बस पेट भर के खाना खाने और जानवरों के साथ पूरा दिन बिताने मैं आनंद आता था।
इतने में दोनों युवक नमूना को छत्रपाल प्रधान के पास लेकर आ जाते हैं। और छत्रपाल को बताते हैं कि "नमूना नदी में भैंसों के साथ नहा रहा था, और आपके पास आने से मना करा था।" यह बात सुनकर छत्रपाल को और ज्यादा गुस्सा आ जाता है। और वह नमूना को एक लाठी लेकर पीटना शुरू कर देता है।
 छत्रपाल की बेटी और पत्नी भागकर नमूना को बचाते हैं। छत्रपाल का बेटा पुलिस इंस्पेक्टर था और बेटी शहर के एक अस्पताल में डॉक्टर थी। बेटी का नाम दीपा था और उसके बेटे का नाम अविनाश था। उस दिन दीपा नमूना को करीब से देखती है, तो उसे नमूना सच्चे दिल का सीधा साधा मनुष्य साफ नजर आता है।
गर्मियों का मौसम था। मस्जिद के मौलवी साहब अपने नौकरों और परिवार वालों के लिए रोजे में खाने के लिए तरबूज अंगूर रूह अफजा आदि सामान शहर के बाजार से नमूना को खरीदने के लिए पैसे देखकर भेजते हैं।
 नमूना जब सारा सामान खरीद कर मौलवी साहब के पास वापस आ रहा था, तो तेज गर्मी लू की वजह से एक पेड़ की छाया में थोड़ा आराम करने बैठ जाता है। तो सामने देखता है कि एक लोमड़ी अपने बच्चों के साथ सूखे तालाब में पानी ढूंढ रही है। और पानी ना मिलने की वजह से लोमड़ी और उसके बच्चे प्यास से तड़प रहे हैं। वह प्यास तेज गर्मी और लू की वजह से कभी पेड़ की छाया में बच्चों के साथ जा रही थी कभी बच्चों के साथ सूखे तालाब पर पानी ढूंढने आ रही थी।
 नमूना जल्दी से उठ कर मौलवी साहब के रोजे में खाने वाले सारे फल तरबूज अंगूर आदि रोजे का समान लोमड़ी और उसके बच्चे को खिला देता है।
और जब मस्जिद में आकर मौलवी साहब को पूरी घटना सुनाता है तो मौलवी साहब क्रोध में आकर अपने नौकरों से नमूना को इतना पिटवाते हैं, कि नमूना का दाया हाथ टूट जाता है।
 और मौलवी साहब के नौकर नमूना को अस्पताल लेकर जाते हैं, तो वह दीपा नमूना का इलाज करती है। और उससे जब पूछती है कि? "जिन लोगों ने तुम्हें पीटा है उनके खिलाफ पुलिस मे रिपोर्ट करनी है।" तो नमूना ऐसा व्यवहार करता है जैसे गलती पर माता-पिता बड़े बुजुर्ग बच्चे को पीटते हैं और बच्चा दिल में कुछ नहीं रखता सब भूल जाता है।
दीपा गांव वालों के शोषण से नमूना को बचाने के लिए उसे अस्पताल में ही छोटी मोटी नौकरी पर लगा देती है।
अस्पताल में एक विधवा महिला अपने इकलौते बेटे को शुगर की बीमारी के इलाज के लिए लाती थी। विधवा महिला नमूना से कुछ ही मुलाकात के बाद उसके अच्छे व्यवहार की वजह से उसे अपने बेटे जैसे प्यार करने लगती है। और नमूना भी उस महिला और उसके बेटे से मां भाई जैसा प्यार करने लगता है।
ज्यादा शुगर बढ़ने की वजह से उस महिला के बेटे की आंखों की रोशनी चली जाती है। तो नमूना को पहली बार जीवन में इतना दुखी देखकर दीपा नमूना से दुखी होने का कारण पूछती है, और नमूना से विधवा मां के बेटे की सारी बात सुनकर नमूना से कहती है कि "अगर कहीं से दान में आंखें मिल जाए, तो उस लड़के को दान की आंखें लगने से उसकी आंखों की रोशनी दोबारा आ जाएगी।" फिर नमूना दीपा से कहता है कि "मैं उस लड़के को अपनी आंखें दान करना चाहता हूं।" फिर दीपा नमूना से कहती है कि "इसके लिए तुम्हे नेत्र दान करने का फॉर्म भरना पड़ेगा और जब तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी तो तुम्हारी आंखें उस लड़के को डॉक्टर लगा देंगे।" नमूना दीपा से कहता है कि "आप मेरा नेत्र दान करने वाला फॉर्म अभी भर दे।" दीपा नमूना के दुख को समझकर नमूना का नेत्रदान का फॉर्म भर देती है। 
और कुछ दिन के बाद नमूना आत्महत्या कर लेता है। डॉक्टर दीपा के द्वारा नमूना का नेत्रदान फार्म  दिखाने के बाद मृतक नमूना की आंखें निकालकर उस विधवा महिला के बेटे को लगा देते हैं। बेटे की आंखें ठीक होने के बाद दोनों मां-बेटे नमूना को भगवान जैसे पूजने लगते हैं। 
नमूना के जीवन की सच्ची कहानी लिखकर दीपा अखबार में छपवा देती है। और कहानी के नीचे एक संदेश लिखती है "नमूना का दिल दर्पण जैसे साफ सुथरा था। अगर ऐसा ही दिल पूरी दुनिया का हो जाए तो यह धरती स्वर्ग बन जाएगी। शायद इसलिए परमात्मा ने हम दुनिया वालों को दिखाने के लिए एक नमूना भेजा था।"

   21
6 Comments

Alka jain

01-Mar-2023 06:14 PM

Nice 👍🏼

Reply

बेहतरीन

Reply

Ajay Tiwari

28-Feb-2023 09:39 AM

Very nice

Reply